अश्विन माह के कृष्णपक्ष का प्रदोष व्रत 26 सितंबर, गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन शिवजी की पूजा कर के पूरे दिन व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत हर महीने के दोनों पक्षों में एक-एक बार आता है। इसे हर महीने के दोनों पक्षों के त्रयोदशी (13वें दिन) को किया जाता है। वहीं इसके अगले दिन मासिक शिवरात्री होती है। हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। हर महीने में प्रदोष और शिवरात्री दोनों ही व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं। शिव पुराण के अनुसार शिवरात्री पर भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे वहीं प्रदोष तिथि पर भगवान शिव मृत्युलोक यानी पृथ्वी पर रहने वालों पर ध्यान देते हैं।
प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह व्रत निर्जल अर्थात् बिना पानी के किया जाता है। प्रदोष व्रत की विशेष पूजा शाम को की जाती है। इसलिए शाम को सूर्य अस्त होने से पहले एक बार फिर स्नान करें। साफ़ सफेद रंग के वस्त्र पहन कर पूर्व दिशा में मुंह कर भगवान की पूजा की जाती है।
- मिट्टी से शिवलिंग बनाएं और विधिवत पूजा करने के बाद उनका विसर्जन करें।
- सबसे पहले दीपक जलाकर उसका पूजन करें।
- सर्वपूज्य भगवान गणेश का पूजन करे।
- तदुपरान्त शिव जी की प्रतिमा को जल, दूध, पंचामृत से स्नानादि कराएं। बिलपत्र, पुष्प , पूजा सामग्री से पूजन कर भोग लगाएं।
- कथा करें और फिर आरती करें।
- भगवान शिव की पूजा में बेल पत्र, धतुरा, फूल, मिठाई, फल आदि का उपयोग अवश्य करें। भगवान पर लाल रंग का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
प्रदोष का महत्व
इस व्रत में भगवान महादेव की पूजा की जाती है। यह प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते है और उन्हें शिव धाम की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रमा को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया। इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। इसके अलावा सप्ताह के अलग-अलग दिन में प्रदोष होने से उसका फल अलग होता है। इस बार गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ रहा है। इसके प्रभाव से शत्रुओं का विनाश होता है।