श्रीचंद्र भगवान ने राष्ट्र की एकता अखण्डता को एक सूत्र में जोड़ने का कार्य किया -महंत रविन्द्रदास

हरिद्वार। कनखल स्थित अखाड़ा ब्रह्मबूटा में भगवान श्रीचंद्र के 525वें अवतरण दिवस पर सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूषों ने श्रीचंद्र भगवान को नमन करते हुए उनके आदर्शो पर चलने का संकल्प लिया। इस धार्मिक समारोह में महंत रविन्द्रदास महाराज ने अपने गुरू महंत विक्रम दास महाराज की पावन स्मृति में सवा दो किलो चांदी से निर्मित श्रीचंद्र भगवान की मूर्ति श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन के मुखिया महंत भगतराम, अखाड़े के सचिव महंत जगतार मुनि व महंत धुनीदास को भेंट की। इस अवसर पर सभी संत महंतों व श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए महंत रविन्द्रदास महाराज ने कहा कि राष्ट्र की एकता अखण्डता को एक सूत्र में बांधने का काम श्रीचंद्र भगवान ने जिस प्रकार से किया है। उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने सदा सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हुए पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करते हुए लोगों के दिलों में सामाजिक भाईचारे की जोत जलाई। अखाड़ा ब्रह्मबूटा के परमाध्यक्ष महंत रविन्द्रदास महाराज ने कहा कि श्रीचंद्र भगवान के प्रयासों से ही धर्म सम्प्रदाय, जात पात व पाखण्ड के जाल में उलझे समाज को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश से आलोकित किया। श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन के मुखिया महंत भगतराम महाराज ने कहा कि जन-जन के आराध्य भगवान श्रीचंद्र ने पूरे देश का भ्रमण कर वैदिक ज्ञान का प्रचार कर समाज को एकता के सूत्र में बांधा। श्रीचंद्र भगवान ने पाखण्ड व कुरीतियों में फंसे समाज को ज्ञान व मुक्ति का मार्ग दिखाया। ब्रह्मबूटा अखाड़े के कोठारी महंत सुरेश मुनि  महाराज ने कहा कि महापुरूषों के जीवन में तप और त्याग का जो आलम्बन होता है। वही बरसब अपनी ओर आकर्षित करता है। घोर तपस्वी, ज्ञान के प्रणेता भगवान श्रीचन्द्र महाराज के त्याग, तपस्या, कुशल ज्ञान आदि महान प्रवृत्तियों ने उन्हें जगत का कंठहार बना दिया। भगवान श्रीचंद्र का जीवन चमत्कारी था ओर संयम एवं तप की सम्पदा उनके जीवन के मूल स्रोत थे। जिससे उन्होंने समाज में फैल रही कुरीतियों को मिटाकर समाज को समरसता का संदेश प्रदान किया। म.म.स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा कि भगवान श्रीचंद्र ने सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण कर सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में अपना बहुमूल्य जीवन समर्पित किया। उन्हीं के आदर्शो को अपनाकर संत समाज राष्ट्र कल्याण में अपना अहम योगदान प्रदान करता चला आ रहा है। महंत जगतार मुनि व महंत धूनी दास महाराज ने कहा कि भगवान श्रीचंद्र ने समाज में फैले पाखण्ड का खंडन अलग अलग मतों में बंटे समाज को संगठित कर एकता के सूत्र में बांधा। भगवान श्रीचंद्र द्वारा स्थापित आदर्शो का अनुसरण करते हुए संत समाज सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के साथ धर्म एवं सस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन में योगदान कर रहा है। इस अवसर पर महंत प्रेमदास, महंत निर्मलदास, महंत जसविन्दर सिंह, महंत अमनदीप, म.म.स्वामी कपिलमुनि, महंत डोगर गिरी, महंत त्रिवेणी दास, महंत दामोदरशरण दास, स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास, स्वामी शिवानंद, आचार्य स्वामी पवन शास्त्री, स्वामी दिव्यांबर मुनि, स्वामी शांतानंद शास्त्री, महंत मोहन सिंह, महंत सुरेश मुनि, महंत गंगादास उदासीन, कोठारी महंत वेदमुनि, महंत श्यामप्रकाश, महंत जमनादास, स्वामी चिदविलासानंद, स्वामी जगदीशानंद गिरी आदि सहित सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूष मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरूआत भगवान श्रीचंद्र की मूर्ति के अनावरण व आरती के साथ हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुखिया महंत भगतराम व संचालन स्वामी रविदेव शास्त्री ने किया। स्वामी सुरेश मुनि, महंत त्रिवेणी दास, महंत जगतार मुनि, महंत धूनीदास आदि संतों ने कार्यक्रम में पधारे सभी संत महापुरूषों का फूलमालाएं पहनाकर स्वागत किया।