पहाड़ो पर सरकारी अस्पतालों की हालत बदहाल स्वास्थ्य सेवायें भी पलायन का मुख़्य कारण -धीरेन्द्र सिंह



गढ़वाल। आज भले ही सरकार ने पहाड़ो पर हर जगह सरकारी अस्पताल बना दिये है। मगर उन सरकारी अस्पतालों की हालात खस्ता बनी हुई है। अस्पतालों में ना तो डाक्टर है। और नही ही अन्य स्टाफ और जो स्टाफ वह पर है। उनके पास दवाईयों की कमी जिससे के आम जनता का परेशानियों का समान करना पड़ रहा है। वह पर आम लोगों का कहना है कि यह पर ना तो कोई मूलभूत सुविधा है, ना ही दवाईयां है। आज भी वह पर एक छोटा से ऐक्सरा और अल्ट्ररासाउड करने के लिए वह की जनता को या तो कोटद्वार  जाना  पडता है। या तो फिर वह काशीपुर जाने को मजबूर है।  और पहाड़ों पर र्दुगम स्थानों में रह रहे लोगों से चिकित्सा कोसों दूर है। और दूर दूर तक कोई पैथलोजी  लैब नही है। जिससे की वह की जनता को मैदानी क्षेत्रों में पलायन करना पड़ता है।  यहां की जनता का कहना है कि यह पर एक ऐसा अस्पताल होने चाहिए जिसमें सभी सुविधायें उपलब्ध हो यहां की जनता का कहना है कि यह पर एक ऐसा अस्पताल होने चाहिए जिसमें सभी सुविधायें उपलब्ध हो  यह पर कुछ अस्पतालों पर सरकार ने स्टाफ तैनात किया है मगर उनके पास दवाईयां नही पहुच पाती है। जब मरीज दवा लेने अस्पताल जाता है तो वह कहते है कि यह पर अभी आगे से दवाईयां नही मिल पा रही है। फिर मरीज को एैसी हालत में वह परेशान होकर पलायन को मजबूर हो जाता है जिससे कि आज पहाडो की हालात खस्ता नजर आ रहे है। हालहि में मैने दो-से तीन अस्पतालों मेे जाकर वह कि स्थिति देखी है। और मैने उन सरकारी अस्पतालों में जाकर देखा कि वह पर जो स्टाफ है वह पहाड़ की लोकल बोली भाषा से वंचित है। जिससे कि मरीज अपनी लोकल भाषा में बोल रहा था परन्तु वह पर तैनात फार्मासिस्ट स्टाफ की समझ में कुछ भी नही आ रहा है था वह मरीज क्या बोल रहा है। तो एैसी स्थिति में वह मरीज को देखेगा और उसे दवा क्या देगा। जब उसकी समझ में वहां के लोगों की बोली भाषा समझ में ही नही आ रही थी। एैसी परिस्थिति में मुझे अहसास हुआ कि यह तो पहाड की जनता के साथ घोर अन्यया हो रहा है। जहॉ  सरकार में हमारे पहाड के जवान और नौजवान बडे बडे पदों पर तैनात है। और उनकी जन्म भूमि की हलात एैसी है।  विभिन्न विकासखण्ड़ों में स्वास्थ्य केन्द्र तो बने हुए है। परन्तु उन अस्पतालों में स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधा और डाक्टर तथा अन्य स्टाफ की भरी कमी है।  वही दूसरी ओर राज्य में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में उत्तराखण्ड की 27वी रैकिंग आने पर उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य सेवाओं खराब प्रदर्शन रहा है। जहॉ स्वास्थ्य सेवाओं की राज्य में खराब स्थिति बनी हुई है। वही पहाडों पर भी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पहले से ही खराब चली आ रही है। और नीति आयोग रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट प्रदान किया जाता है। लेकिन बजट कम खर्च होने के कारण सरकार को केन्द्र सरकार ने बजट में कटौती करने का अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन राज्य सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं मे रैकिंग गिरने के बाद आला अफसरों ने केन्द्र सरकार में अपना पक्ष रखा और अपनी सफाई दी। राज्य के मैदानी क्षेत्रों में और पहाडो पर चिकित्सकों की भारी कमी होने के कारण जनता को उनकी आवश्यकतानुसार चिकित्सा सेवायें नही मिल पा रही है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देखा जाये तो राज्य सरकार अपने स्वास्थ्य बजट को पूरा खर्च नही कर पाती है। एैसे में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कितनी खराब हो रही है। और एैसी स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश में एैसी स्थिति तब जब केन्द्र और राज्य में एक ही सरकार है। क्या ऐसी स्थिति में जनता को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल पाना कितना सिद्व हो पायेगा।